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Thursday, November 17, 2011

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hi , i m prafull singh

Monday, February 7, 2011

आओ वासंती हो जाए बताएं

वसंत पंचमी उमंग, उल्लास, उत्साह, विद्या, बुद्धि और ज्ञान के समन्वय का पर्व है। मां सरस्वती विद्या, बुद्धि, ज्ञान व विवेक की अधिष्ठात्री देवी हैं। उनसे हम विवेक व बुद्धि प्रखर होने, वाणी मधुर व मुखर होने और ज्ञान साधना में उत्तरोत्तर वृद्धि होने की कामना करते हैं। पुराणों के अनुसार, वसंत पंचमी के दिन ब्रह्माजी के मुख से मां सरस्वती का प्राकट्य हुआ था और जड-चेतन को वाणी मिली थी। इसीलिए वसंत पंचमी को विद्या जयंती भी कहा जाता है और इस दिन सरस्वती पूजा का विधान है।
वसंत पंचमी पर हम ऋतुओं के राजा वसंत का स्वागत करते हैं। श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने दसवें अध्याय के 35वें श्लोक में वसंत ऋतु को अपनी विभूति बताया है। उन्होंने कहा है कि वसंत ऋतु मैं ही हूं। मैं मासों में मार्गशीर्ष और ऋतुओं में वसंत हूं।
मनुष्य ही नहीं, जड और चेतन प्रकृति भी इस महोत्सव के लिए श्रृंगार करने लगती है। सबके मन और देह में नई शक्ति व ऊर्जा की अनुभूति होती है। तरह-तरह के फूल खिलने लगते हैं। हरीतिमा के गलीचे बिछ जाते हैं। हरी धानी साडी, पीली-पीली फूली सरसों की चुनरिया, रंग बिरंगे फूलों का श्रृंगार, कोयल की कुहू-कुहू और भंवरों का गुंजार संदेश देते हैं कि ऋतुराज वसंत आ गया है।
संतकवितुलसीदास ने रामचरित मानस में और महाकवि कालिदास ने ऋतुसंहार में वसंत ऋतु का सुंदर वर्णन किया है। मान्यता है कि कवि कालिदास पहले अज्ञानी व महामूर्खथे, लेकिन मां सरस्वती से ज्ञान का वरदान पाकर महाकवि कालिदास हो गए थे। मां सरस्वती हमें अविवेक व अज्ञानता से मुक्ति दिलाती हैं। बुद्धि और विवेक ही है, जो मनुष्य को श्रेष्ठ प्राणी बनाता है। जीवन में इसी का प्रयोग करके मनुष्य सुख, समृद्धि एवं शांति का भोग कर सकता है।
पद्मपुराणमें वर्णित मां सरस्वती का रूप प्रेरणादायी है। वे शुभ्रवस्त्रपहने हैं। उनके चार हाथ हैं, जिनमें वीणा, पुस्तक और अक्षरमाला है। उनका वाहन हंस है। शुभ्रवस्त्रहमें प्रेरणा देते हैं कि हम अपने भीतर सत्य अहिंसा, क्षमा, सहनशीलता, करुणा, प्रेम व परोपकार आदि सद्गुणों को बढाएं और काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, अहंकार आदि दुर्गुणों से स्वयं को बचाएं। चार हाथ हमारे मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार रूपी अंत:करण चतुष्ट्य का प्रतीक हैं। पुस्तक ज्ञान का प्रतीक है, अक्षरमाला हमें अध्यात्म की ओर प्रेरित करती है। दो हाथों में वीणा हमें ललित कलाओं में प्रवीण होने की प्रेरणा देती है। जिस प्रकार वीणा के सभी तारों में सामंजस्य होने से लयबद्ध संगीत निकलता है, उसी प्रकार मनुष्य अपने जीवन में मन व बुद्धि का सही तारतम्य रखे, तो सुख, शांति, समृद्धि व अनेक उपलब्धियां प्राप्त कर सकता है। सरस्वती का वाहन हंस विवेक का परिचायक है। विवेक के द्वारा ही अच्छाई-बुराई में अंतर करके अच्छाई ग्रहण की जा सकती है।
कुछ चित्रों में मां सरस्वती को कमल पर बैठा दिखाया जाता है। कीचड में खिलने वाले कमल को कीचड स्पर्श नहीं कर पाता। यानी हमें चाहे कितने ही दूषित वातावरण में रहना पडे, परंतु बुराई हम पर प्रभाव न डाल सके। मां सरस्वती की पूजा-अर्चना इस बात की द्योतक है कि उल्लास में बुद्धि व विवेक का संबल बना रहे।
आज अभावों व कुंठाओं में कभी-कभी जिंदगी की कशमकश इस वासंती रंग को फीका करने लगती है। तो क्यों न हम वसंत से प्रेरणा लेकर जीवन को संपूर्णता से जिएं और कामना करें कि सबके जीवन में खुशियों के फूल सदा खिलते रहें। वसंत ऋतु जैसा उल्लास व सुंदरता बनी रहे, क्योंकि जो सत्य है, वही शिव है और वही सुंदर है।

Thursday, February 3, 2011

धन से नहीं मिलती शांति


मनुष्य जीवन अनमोल है। उसे लोग सुख की खोज में लगा रहे हैं और सुख को धन में खोज रहे हैं। धन अर्जित करने के लिए लोग पाप करने से भी नहीं चूकते। जहां तक मनुष्य की चलती है, वह धन अर्जित करने के लिए साम, दाम, दंड और भेद का इस्तेमाल कर रहा है।  धन से केवल साधन मिल सकता है शांति नहीं। अगर इस अनमोल जीवन में शांति प्राप्त करनी है, तो सबसे पहले जीव के अंदर परमात्मा का दर्शन करें। जीवों पर दया करें और दीन-दुखियों की सेवा करें। मानव हित से जुडे कायरें में खुद को लगाएं। वही जीवन का सबसे बडा धन है। इंसान आज धन की चाह में मां- बाप, भाई और अन्य नाते रिश्तेदारों को भूलता जा रहा है। क्षणिक सुख के लिए वह नास्तिक बन रहा है। वह यह नहीं सोच रहा है कि जीवन का आनंद धन में नहीं, मां-बाप की सेवा में है। इस धरती पर मां-बाप साकार भगवान हैं। यह बात तब समझ में आती है, जब इंसान खुद बूढा होता है। उसे तब अपनी गलती का अहसास होता है। तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। इसलिए कहा गया है बोए पेड बबूल का तो आम कहां से पाय

Thursday, January 27, 2011

मैं तो ठहर गया, पर तू कब ठहरेगा!


कहा जाता है कि जीवन चलने का नाम है अत:चलते रहो। चरैवेति,चरैवेति।चलना, निरंतर आगे बढना ही जीवन है, रुकना या पीछे हटना मृत्यु है। लेकिन निरंतर चलते रहने के लिए, आगे बढते रहने के लिए एक चीज और भी जरूरी है-रुकना। निरंतर चलते रहने के लिए रुकना, विश्राम करना या ठहरना भी अनिवार्य है।
चलना वस्तुत:दो प्रकार का होता है। एक शरीर का चलना या गति करना और दूसरा मन का चलना या गति करना। मन, जो शरीर को चलाता है, उसे नियंत्रित करता है आध्यात्मिक दृष्टि से उसकी गति को नियंत्रित करना भी अनिवार्य है। एक रुकने का अर्थ भौतिक शरीर की गति अर्थात कर्म से मुंह मोडना है लेकिन दूसरे रुकने का अर्थ मन की गति को विराम देना है। मन जो अत्यंत चंचल है, उसको नियंत्रित करना है। जब मन रुक जाता है, तो वह शांत-स्थिर होकर पुनर्निर्माण में सहायक होता है। जब मन तेज भागता है अथवा गलत दिशा में दौडता है, तो ठहराव की जरूरत होती है। कीचड युक्त पानी जब स्थिर हो जाता है, तो उसमें घुली मिट्टी नीचे बैठ जाती है और स्वच्छ पानी ऊपर तैरने लगता है। मन को रोकने पर भी यही होता है। विचारों का परिमार्जन होने लगता है। कार्य करता है हमारा शरीर, लेकिन उसे चलाता है हमारा मस्तिष्क और मस्तिष्क को चलाने वाला है हमारा मन। शरीर को सही गति प्रदान करने के लिए मन को रोकना और उसे सकारात्मकताप्रदान करना अनिवार्य है। जब बुद्ध और अंगुलिमालका आमना-सामना हुआ, तो दोनों तरफ से ठहरने की बात होती है। अंगुलिमालकडककर बुद्ध से कहता है, ठहर जा। बुद्ध अत्यंत शांत भाव से कहते हैं, मैं तो ठहर गया हूं, पर तू कब ठहरेगा? एक आश्चर्य घटित होता है। बुद्ध की शांत मुद्रा सारे परिवेश को शांत-स्थिर कर देती है। उस असीम शान्ति में अंगुलिमालभी आप्लावित हो जाता है। वह ठहर जाता है और दस्युवृत्ति त्याग कर बुद्ध की शरण में आ जाता है। मन की हिंसक वृत्ति का विनाश होने का प्रारंभ ही वास्तविक ठहराव है। जब व्यक्ति पूर्ण रूप से ठहर जाता है, उसके मन से उद्विग्नता तथा द्वंद्व मिट जाता है तभी समता का उदय होता है। मन के ठहराव का अर्थ है नकारात्मक भावों के स्थान पर सकारात्मक भावों का उदय। सकारात्मक भावों के उदय के साथ ही व्यक्ति आनंद के साम्राज्य में प्रवेश करता है।
आनंद के लिए जीवन की गति तथा विचारों के प्रवाह को नियंत्रित कर उन्हें संतुलित करना जरूरी है। यही आध्यात्मिकता है। यही वास्तविक आनंद अथवा परमानंद है।

Wednesday, January 26, 2011

Tuesday, January 25, 2011

Freedom is not worth having if it does not include the freedom to make mistakes.

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Happy republic day

happy republic day wallpaperRepublic Day is celebrated with much enthusiasm athwart the country and mainly in the capital New Delhi where the celebrations begin with the president to the nation. This day is celebrated in January 26. And this day is declared a national holiday.
The beginning of the event is always a sober reminder of the sacrifices of the martyrs who died for the country in the freedom movement and the following wars in defense of the autonomy of their country.
This year have the Indonesian President Susilo Bambang Yudhoyono as the Chief Guest. Usually the chief guests are invited from countries with whom India favour special relationship.
Here, some inspires Happy Republic Day 2011 SMS, messages, wallpapers, greetings and quotes to express the feeling of proud to be Indian:
“Aao Desh ka samman kare
shahido ki shahidat kare
Ek bar fir rastra ki kaman
hum Hindustani apne haaton me dhare
Aao swantrata diwas ka samaan kare.”
Azad bharat k nikamo
kal agar dipawali ya new year hota to aaj sms ki line laga dete
Ab kam band karo aur sabko msg karo
happy republic day Chak de India
Freedom in Mind
Faith in Words
Pride in our Heart
Memories in our Souls
Lets Salute the Nation on
REPUBLIC DAY
Expansion of INDIA
I – INDIAN
N – NOT
D – DELAY
I – IN
A – ACTION
Happy Republic Dayhappy republic day wallpaper
We would similar to to wish Happy Republic Day to all Indians around the world. If you have some wishes to give to your Family and Friends. Happy Republic Day 2011!